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तऽआय॑जन्त॒ द्रवि॑ण॒ꣳ सम॑स्मा॒ऽऋष॑यः॒ पूर्वे॑ जरि॒तारो॒ न भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॒ सूर्त्ते॒ रज॑सि निष॒त्ते ये भू॒तानि॑ स॒मकृ॒॑ण्वन्नि॒मानि॑ ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। आ। अ॒य॒ज॒न्त॒। द्रवि॑णम्। सम्। अ॒स्मै॒। ऋष॑यः। पूर्वे॑। ज॒रि॒तारः॑। न। भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॑। सूर्त्ते॑। रज॑सि। नि॒ष॒त्ते। नि॒स॒त्त इति॑ निऽस॒त्ते। ये। भू॒तानि॑। स॒मकृ॑ण्व॒न्निति॑ स॒म्ऽअकृ॑ण्वन्। इमानि॑ ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (पूर्वे) पूर्ण विद्या से सब की पुष्टि (जरितारः) और स्तुति करनेवाले के (न) समान (ऋषयः) वेदार्थ के जाननेवाले (भूना) बहुत से (असूर्त्ते) परोक्ष अर्थात् अप्राप्त हुए वा (सूर्त्ते) प्रत्यक्ष अर्थात् पाये हुए (निषत्ते) स्थित वा स्थापित किये हुए (रजसि) लोक में (इमानि) इन प्रत्यक्ष (भूतानि) प्राणियों को (समकृण्वन्) अच्छे प्रकार शिक्षित करते हैं, (ते) वे (अस्मै) इस ईश्वर की आज्ञा पालने के लिये (द्रविणम्) धन को (सम्, आ, अयजन्त) अच्छे प्रकार संगत करें ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् लोग इस जगत् में परमात्मा की आज्ञा पालने के लिये सृष्टिक्रम से तत्त्वों को जानते हैं, वैसे ही अन्य लोग आचरण करें। जैसे धार्मिक जन धर्म के आचरण से धन को इकट्ठा करते हैं, वैसे ही सब लोग उपार्जन करें ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ते) (आ) (अयजन्त) संगच्छेरन् (द्रविणम्) श्रियम् (सम्) (अस्मै) अस्येश्वरस्याज्ञापालनाय (ऋषयः) वेदवेत्तारः (पूर्वे) पूर्णविद्यया सर्वस्य पोषकाः (जरितारः) स्तावकाः (न) इव (भूना) भूमना। अत्र पृषोदरादित्वान्मकारलोपः (असूर्त्ते) अप्राप्ते परोक्षे। अत्र सृधातोः क्तान्तं निपातनम्। नसत्तनिषत्त० [अष्टा०८.२.६१] इत्यनेन निपात्यते ॥ (सूर्त्ते) प्राप्ते प्रत्यक्षे (रजसि) लोके (निषत्ते) स्थिते स्थापिते वा (ये) (भूतानि) (समकृण्वन्) सम्यक् शिक्षितान् कुर्युः (इमानि) प्रत्यक्षविषयाणि ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये पूर्वे जरितारो न ऋषयो भूनाऽसूर्त्ते सूर्त्ते निषत्ते रजसीमानि भूतानि साक्षात् समकृण्वन्, तेऽस्मै द्रविणं समायजन्त ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसोऽत्र जगति परेशाज्ञापालनाय सृष्ट्यनुक्रमेण तत्त्वं जानन्ति, तथैवान्य आचरन्तु। यथा धार्मिका धनमुपार्जन्ति, तथैव सर्व उपार्जन्तु ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक या जगात परमेश्वराची आज्ञा पाळण्यासाठी सृष्टिक्रमाचे तत्त्व जाणतात, तसेच इतरांनीही जाणून त्याप्रमाणे वागावे. जसे धार्मिक लोक धर्माचरणाने द्रव्य प्राप्त करतात, तसेच इतरांनीही करावे.